Sunday, January 10, 2010

तुम आओगी

वीराने में नदिया बनकर बह निकलोगी
अँधियारे में दीपक बनकर जल उठोगी।
बन्सी में सुर घोल रागिनी बिखरा दोगी
बन में गन्ध बिखेर फूल सी तुम महकोगी।
शब्द बीन कर मेरी बिखरी कविताओं के
झाड पोंछ कर और करीने से समेट कर
भरकर उनमें अर्थ उन्हें पूरा कर दोगी।

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