Thursday, January 7, 2010

उम्र

उम् ने गूँथीँ थीं यादों की लडियाँ
मखमली सपने भी उम्र ने ही उधेढ़ दिए
उम्र ने सँजोयी थी भुरभुरी यादेँ,
मुरझाये फूल भी उम्र ने ही बिखेर दिये

उम्र ने बाँधी थी रिश्तों की मेंड़,
संबधों के तट भी उम्र ने ही तोड़ दिए
उम्र ने जलायी थी आशा की ज्योति,
सपनोँ के दीपक भी उम्र ने ही फोड़ दिये

उम्र ने बसाये थे, गुड़ियों के घर,
मिट्टी के घरौंदे भी, उम्र ने ही उजाड़ दिये.
उम्र ने बोये थे भावनाओं के बीज
और नन्हें पौधे भी, उम्र ने ही उखाड दिये.

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