Tuesday, December 30, 2014

मैं पिघला भी

मैं पिघला भी तुम्हारी आंच से 
बस इतना ही,  
बस इतना सा 
तुम्हारी उंगलियों  के पोर को छूता हुआ निकला 

चमकती आँख का आंसू 
हृदय के कोर से होकर ,
गले के पास ठिठका, 
फिर पलक के छोर को छूता हुआ निकला 

वो सारी रात भर बीने हुए, बिखरे हुए तारे 
मैं टांकता था पलकों पर, तभी 
एक तैरता पंछी 
सिहरती सुगबुगाती भोर को  छूता  हुआ निकला  

हमारे बीच के  रंगीन धागे 
सुलझते, तब ही 
मोहल्ले  का कोई बच्चा 
हवा में बह  रही उस डोर को छूता हुआ निकला 

Tuesday, November 11, 2014

मैं दर्द सुनता हूँ


मैं दर्द सुनता तो हूँ,
दूर कहीं मंदिर की घंटियों की तरह 
ये मेरा है या किसी और का
ये जान  नहीं पाता ।
मैं सपने देखता तो हूँ,
आसमान में उड़ते पंछियों की तरह
वो मेरे हैं या किसी और के
ये पहचान नहीं पाता ।
मैं प्यार करता तो हूँ
फूलों की फूटती मुस्कान की तरह
ये खुशबू किसको घेर लेगी
ये कह नहीं सकता।

I Prefer To Love


How could I celebrate my win?
when someone is hurt by his loss!
I prefer to lose.
How could I climb at the top?
when others are struggling below!
I prefer to be at the bottom.
How could I shout ?
when the other is burning in anger!
I prefer to be silent.
How could I hate ?
When there is already so much!
I prefer to love.

राग उठे

मैंने सपनों के सितारों से आसमान छुआ
हद हुई ये कि वो हाथों में ही जाग उठे
मैंने होठों से लगाई थी बांसुरी यूं ही
सुर तो बिखरे ही, वहां राग उठे