हमारे बीच जो ये अथाह सागर है
इसे मैं शायद कभी भर न पाऊंगा
पर कभी, भीग कर, पिघल कर
मिल जाऊँगा इसी सागर में
और उस पार तुम्हारे पैर की उँगलियों को छू लूंगा
मुझे और कोई मिलन न चाहिए।
जब तुम झुक कर किसी अनजान बच्चे
का माथा चूमोगी, वहां मैं ही होऊंगा।
इसे मैं शायद कभी भर न पाऊंगा
पर कभी, भीग कर, पिघल कर
मिल जाऊँगा इसी सागर में
और उस पार तुम्हारे पैर की उँगलियों को छू लूंगा
मुझे और कोई मिलन न चाहिए।
जब तुम झुक कर किसी अनजान बच्चे
का माथा चूमोगी, वहां मैं ही होऊंगा।
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